BA Semester-5 Paper-1 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2801
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- ब्राह्मण साहित्य का परिचय देते हुए, ब्राह्मणों के प्रतिपाद्य विषय का विवेचन कीजिए।

अथवा
ब्राह्मण साहित्य पर एक परिचयात्मक निबन्ध लिखिए।

उत्तर -

वैदिक साहित्य में संहिताओं के पश्चात् ब्राह्मण साहित्य का महत्वपूर्ण स्थान है। जिनमें मन्त्रों एवं उनके विनियोगों की व्याख्या विहित होती है उसे 'ब्राह्मण कहते हैं। ब्रह्म का एक अर्थ यज्ञ भी होता है। तद्नुसार यज्ञ (ब्रह्म) का प्रतिपादन करने के कारण इसे ब्राह्मण नाम से जाना जाता है। ये ब्राह्मण गद्यात्मक तथा विवरणात्मक हैं। इस प्रकार ब्राह्मणों में यज्ञों की विस्तृत विवेचना, कर्मकाण्डीय विधि-विधानों की व्याख्या तथा उनके पारस्परिक सम्बन्धों पर विचार किया गया है। ब्राह्मण ग्रन्थों का रचनाकाल ३००० ई. पूर्व से २००० ई. पू. तक माना जाता है। मैकडानल का कथन है कि विश्व के किसी भी साहित्य में उपलब्ध धार्मिक ग्रन्थों में सबसे प्राचीन होने के कारण ये ब्राह्मण ग्रन्थ विश्व-धर्म के अध्येता के लिए अत्यन्त उपादेय हैं तथा इनमें प्राचीन भारत की परिस्थिति के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण सामग्री प्राप्त होती है। ब्राह्मण ग्रन्थों की शैली को देखने से यह प्रतीत होता है कि इनकी रचना उन्हीं व्यक्तियों के लिए की गयी है जो यज्ञों के विधि-विधान के लिए पहले से ही परिचित थे। क्योंकि जो व्यक्ति विधि-विधान से पूर्ण तथा अपिरिचत हैं, उनके लिए ये ग्रन्थ अत्यन्त कठिन हैं। ऐसा व्यक्ति इन ग्रन्थों से लाभ नहीं उठा सकता है। ब्राह्मण ग्रन्थों का मुख्य उद्देश्य यह है कि जो व्यक्ति यज्ञ विधि से परिचित है, उन्हें यज्ञ सम्बन्धी कर्मकाण्ड की पवित्रतता के महत्व का ज्ञान करा दिया जाये। ब्राह्मण' शब्द में 'अण' तद्धित प्रत्यय करने पर 'ब्राह्मण' शब्द बनता है, जिसका अर्थ है - 'ब्रह्म का' अर्थात् ब्रह्म से सम्बन्धित रचना आदि। यहाँ इसका अर्थ है 'ब्रह्म से सम्बन्धित व्याख्या' या 'ब्रह्म से सम्बन्धित व्याख्या ग्रन्थ। आचार्य भट्ट भाष्यकर ने भी, स्वरिचत 'तैत्तिरीय संहिता के भाष्य में 'ब्राह्मण ग्रन्थ के स्वरूप का परिचय इसी रूप में दिया है। उनके अनुसार “ब्राह्मणं नाम कर्मणस्तन्मन्त्राणां च व्याख्यानो ग्रन्थः। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि 'यज्ञ' की व्याख्या करने वाले और यज्ञ मन्त्रों की व्याख्या करने वाले ग्रन्थ ब्राह्मण कहलाते हैं।

ब्राह्मणों का प्रतिपाद्य विषय तीन वर्गों में विभाजित किया गया है। विधि, अर्थवाद और उपनिषद्। इसमें विधि भाग यज्ञ सम्बन्धित प्रयोगात्मक विधियों का प्रतिपादन करता है। अर्थवाद में उपाख्यानों एवं प्रशंसात्मक कथाओं द्वारा प्रयोग-विधान का सूक्ष्म रहस्य समझाया गया है। उपनिषद् भाग में आध्यात्मिक एवं दार्शनिक विचारों का विवेचन है। शबरस्वामी ने शबर भाष्य में हेतु, निर्णयन, निन्दा, प्रशंसा, संशय, विधि- परिक्रिया, पुराकल्प, व्यवधारण, कल्पना तथा उपमान इन दस विधियों का उल्लेख किया है। इसमें निन्दा और प्रशंसा का अर्थवाद में सन्निवेश है। विधि के अन्तर्गत यज्ञीय विधियों एवं अनुष्ठानों का उल्लेख किया गया है। जैसे ताण्ड्य ब्राह्मण में 'बहिष पवमान' के लिए अध्वर्यु, प्रस्तोता, उद्गाता, प्रतिहर्ता और ब्रह्मा इन पाँच ऋत्विजों के प्रसर्पण का विधान है। इनमें से क्रमशः एक को दूसरे के पीछे पंक्ति में चलने का नियम है और नियम टूट जाने से हानि की सम्भावना बनी रहती है। शतपथ ब्राह्मण में यज्ञीय विधियों का भण्डार है। ब्राह्मणों में मन्त्रों के विनियोग का सम्पूर्ण विधान बताया गया है। विनियोग में किस मन्त्र का प्रयोग किस उद्देश्य की सिद्धि के लिए किया जाये, इसका तर्कपूर्ण विवेचन किया गया है। दीर्घ रोगी के शरीर में मित्रावरुण के रहने की प्रार्थना शरीर में प्राणापान वायु के धारण का संकेत है। कर्मकाण्ड की विधियों के लिए जो कारण बताये गये हैं उन्हें हेतु कहते हैं। ब्राह्मणों में यज्ञीय विधान के लिए समुचित एवं योग्य कारणों का निर्देश है। जैसे अग्निहोम पर गये उद्गाता मण्डप में उदुम्बर वृक्ष की शाखा का उच्छ्रयण करता है। इसका कारण है कि 'प्रजापति ने देवों के लिए उर्जव्य विभाग किया, उसी से उम्बर वृक्ष की उत्पत्ति हुई, अतः उम्बर का देवता प्रजापति माना गया है और उद्गाता का सम्बन्ध प्रजापति से है। इसी प्रकार द्रोणकलश स्थ के नीचे रखने के कारण का निर्देश किया गया है कि प्रजापति के प्रजासृष्टि की कामना करते ही उनकी मस्तिष्क से आदित्य की उत्पत्ति हुई, उसने प्रजापति का सिर काट डाला, उसी से द्रोण कलश की उत्पत्ति हुई। उसी में देदीप्यमान सोमरस का पानकर देवताओं ने दीर्घा पुण्य को प्राप्त किया। अर्थवाद में उपाख्यानों एवं प्रशंसात्मक कथाओं के द्वारा यज्ञीय प्रयोगों का महत्व बताया गया है। किस यज्ञ के लिए किन विधियों की आवश्यकता पड़ती है और उससे किस फल की प्राप्ति होती है, इन विषयों का वर्णन अर्थवाद के अन्तर्गत है। इसके आलावा यज्ञ में निषिद्ध ग्रन्थों की निन्दा तथा विधियों, अनुष्ठानों एवं देवों की प्रशंसापरक वाक्य भी आदर्शवाद की परिधि में आते हैं। जैसे यज्ञ में भाष का प्रयोग वर्जित हैं तथा वह निन्दनीय है। ताण्डय ब्राह्मण में अग्निहोम को सब यज्ञों में श्रेष्ठ एवं उपादेय बताया गया है।

ब्राह्मणों में जगह-जगह पर शब्दों के निर्वचन का भी उल्लेख किया गया है जो भाषाशास्त्र के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। जैसे उदक' शब्द का निर्णयन इस प्रकार किया गया है - उदानिषुर्महीरिति तस्मादक मुच्यते।' इसी प्रकार 'रथन्तर' शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार है - "रथंमर्या क्षेप्लाऽतशित् इति तद् रथन्तरस्य स्थन्तरत्वम्" इस तरह ब्राह्मण ग्रन्थों में अनेक प्रकार की निरुक्तियों का वर्णन किया गया है। ब्राह्मण में अनेक रोचक एवं महत्वपूर्ण आख्यान मिलतें हैं जिनका उल्लेख विधि-विधानों के स्वरूप की व्याख्या करता है। ये आख्यान यज्ञीय कर्मकाण्डों के हेतु आदि विधियों की स्पष्ट व्याख्या करते हैं किन्तु कभी भी इन आख्यानों में बहुत सी महत्वपूर्ण बातें भी प्राप्त हो जाती हैं। आख्यानों ने ब्राह्मण ग्रन्थों को सरल बनाया है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वेद के ब्राह्मणों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- ऋग्वेद के वर्ण्य विषय का विवेचन कीजिए।
  3. प्रश्न- किसी एक उपनिषद का सारांश लिखिए।
  4. प्रश्न- ब्राह्मण साहित्य का परिचय देते हुए, ब्राह्मणों के प्रतिपाद्य विषय का विवेचन कीजिए।
  5. प्रश्न- 'वेदाङ्ग' पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण पर एक निबन्ध लिखिए।
  7. प्रश्न- उपनिषद् से क्या अभिप्राय है? प्रमुख उपनिषदों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  8. प्रश्न- संहिता पर प्रकाश डालिए।
  9. प्रश्न- वेद से क्या अभिप्राय है? विवेचन कीजिए।
  10. प्रश्न- उपनिषदों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- ऋक् के अर्थ को बताते हुए ऋक्वेद का विभाजन कीजिए।
  12. प्रश्न- ऋग्वेद का महत्व समझाइए।
  13. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण के आधार पर 'वाङ्मनस् आख्यान् का महत्व प्रतिपादित कीजिए।
  14. प्रश्न- उपनिषद् का अर्थ बताते हुए उसका दार्शनिक विवेचन कीजिए।
  15. प्रश्न- आरण्यक ग्रन्थों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- ब्राह्मण-ग्रन्थ का अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- आरण्यक का सामान्य परिचय दीजिए।
  18. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
  19. प्रश्न- देवता पर विस्तृत प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तों में से किसी एक सूक्त के देवता, ऋषि एवं स्वरूप बताइए- (क) विश्वेदेवा सूक्त, (ग) इन्द्र सूक्त, (ख) विष्णु सूक्त, (घ) हिरण्यगर्भ सूक्त।
  21. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में स्वीकृत परमसत्ता के महत्व को स्थापित कीजिए
  22. प्रश्न- पुरुष सूक्त और हिरण्यगर्भ सूक्त के दार्शनिक तत्व की तुलना कीजिए।
  23. प्रश्न- वैदिक पदों का वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- 'वाक् सूक्त शिवसंकल्प सूक्त' पृथ्वीसूक्त एवं हिरण्य गर्भ सूक्त की 'तात्त्विक' विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में प्रयुक्त "कस्मै देवाय हविषा विधेम से क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- वाक् सूक्त का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  28. प्रश्न- वाक् सूक्त अथवा पृथ्वी सूक्त का प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- वाक् सूक्त में वर्णित् वाक् के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  30. प्रश्न- वाक् सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  31. प्रश्न- पुरुष सूक्त में किसका वर्णन है?
  32. प्रश्न- वाक्सूक्त के आधार पर वाक् देवी का स्वरूप निर्धारित करते हुए उसकी महत्ता का प्रतिपादन कीजिए।
  33. प्रश्न- पुरुष सूक्त का वर्ण्य विषय लिखिए।
  34. प्रश्न- पुरुष सूक्त का ऋषि और देवता का नाम लिखिए।
  35. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। शिवसंकल्प सूक्त
  36. प्रश्न- 'शिवसंकल्प सूक्त' किस वेद से संकलित हैं।
  37. प्रश्न- मन की शक्ति का निरूपण 'शिवसंकल्प सूक्त' के आलोक में कीजिए।
  38. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त में पठित मन्त्रों की संख्या बताकर देवता का भी नाम बताइए।
  39. प्रश्न- निम्नलिखित मन्त्र में देवता तथा छन्द लिखिए।
  40. प्रश्न- यजुर्वेद में कितने अध्याय हैं?
  41. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त के देवता तथा ऋषि लिखिए।
  42. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। पृथ्वी सूक्त, विष्णु सूक्त एवं सामंनस्य सूक्त
  43. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त में वर्णित पृथ्वी की उपकारिणी एवं दानशीला प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- पृथ्वी की उत्पत्ति एवं उसके प्राकृतिक रूप का वर्णन पृथ्वी सूक्त के आधार पर कीजिए।
  45. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  46. प्रश्न- विष्णु के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- विष्णु सूक्त का सार लिखिये।
  48. प्रश्न- सामनस्यम् पर टिप्पणी लिखिए।
  49. प्रश्न- सामनस्य सूक्त पर प्रकाश डालिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। ईशावास्योपनिषद्
  51. प्रश्न- ईश उपनिषद् का सिद्धान्त बताते हुए इसका मूल्यांकन कीजिए।
  52. प्रश्न- 'ईशावास्योपनिषद्' के अनुसार सम्भूति और विनाश का अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा विद्या अविद्या का परिचय दीजिए।
  53. प्रश्न- वैदिक वाङ्मय में उपनिषदों का महत्व वर्णित कीजिए।
  54. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के प्रथम मन्त्र का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के अनुसार सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करने का मार्ग क्या है।
  56. प्रश्न- असुरों के प्रसिद्ध लोकों के विषय में प्रकाश डालिए।
  57. प्रश्न- परमेश्वर के विषय में ईशावास्योपनिषद् का क्या मत है?
  58. प्रश्न- किस प्रकार का व्यक्ति किसी से घृणा नहीं करता? .
  59. प्रश्न- ईश्वर के ज्ञाता व्यक्ति की स्थिति बतलाइए।
  60. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या में क्या अन्तर है?
  61. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या (ज्ञान एवं कर्म) को समझने का परिणाम क्या है?
  62. प्रश्न- सम्भूति एवं असम्भूति क्या है? इसका परिणाम बताइए।
  63. प्रश्न- साधक परमेश्वर से उसकी प्राप्ति के लिए क्या प्रार्थना करता है?
  64. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् का वर्ण्य विषय क्या है?
  65. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  66. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  67. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  68. प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।
  69. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  70. प्रश्न- जैन दर्शन का नया विचार प्रस्तुत कीजिए तथा जैन स्याद्वाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या अभिप्राय है? बौद्ध धर्म के साहित्य तथा प्रधान शाखाओं के विषय में बताइये तथा बुद्ध के उपदेशों में चार आर्य सत्य क्या हैं?
  72. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  73. प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
  74. प्रश्न- क्या बौद्धदर्शन निराशावादी है?
  75. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  76. प्रश्न- विविध दर्शनों के अनुसार सृष्टि के विषय पर प्रकाश डालिए।
  77. प्रश्न- तर्क-प्रधान न्याय दर्शन का विवेचन कीजिए।
  78. प्रश्न- योग दर्शन से क्या अभिप्राय है? पतंजलि ने योग को कितने प्रकार बताये हैं?
  79. प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  80. प्रश्न- मीमांसा का क्या अर्थ है? जैमिनी सूत्र क्या है तथा ज्ञान का स्वरूप और उसको प्राप्त करने के साधन बताइए।
  81. प्रश्न- सांख्य दर्शन में ईश्वर पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- षड्दर्शन के नामोल्लेखपूर्वक किसी एक दर्शन का लघु परिचय दीजिए।
  83. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  84. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। श्रीमद्भगवतगीता : द्वितीय अध्याय
  85. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के अनुसार आत्मा का स्वरूप निर्धारित कीजिए।
  86. प्रश्न- 'श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के आधार पर कर्म का क्या सिद्धान्त बताया गया है?
  87. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता द्वितीय अध्याय के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए?
  88. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का सारांश लिखिए।
  89. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता को कितने अध्यायों में बाँटा गया है? इसके नाम लिखिए।
  90. प्रश्न- महर्षि वेदव्यास का परिचय दीजिए।
  91. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता का प्रतिपाद्य विषय लिखिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( आरम्भ से प्रत्यक्ष खण्ड)
  93. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं पदार्थोद्देश निरूपण कीजिए।
  94. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं द्रव्य निरूपण कीजिए।
  95. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं गुण निरूपण कीजिए।
  96. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं प्रत्यक्ष प्रमाण निरूपण कीजिए।
  97. प्रश्न- अन्नम्भट्ट कृत तर्कसंग्रह का सामान्य परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन एवं उसकी परम्परा का विवेचन कीजिए।
  99. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों का विवेचन कीजिए।
  100. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार प्रत्यक्ष प्रमाण को समझाइये।
  101. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के आधार पर 'गुणों' का स्वरूप प्रस्तुत कीजिए।
  102. प्रश्न- न्याय तथा वैशेषिक की सम्मिलित परम्परा का वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक के प्रकरण ग्रन्थ का विवेचन कीजिए॥
  104. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान प्रमाण की विवेचना कीजिए।
  105. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( अनुमान से समाप्ति पर्यन्त )
  106. प्रश्न- 'तर्कसंग्रह ' अन्नंभट्ट के अनुसार अनुमान प्रमाण की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- तर्कसंग्रह के अनुसार उपमान प्रमाण क्या है?
  108. प्रश्न- शब्द प्रमाण को आचार्य अन्नम्भट्ट ने किस प्रकार परिभाषित किया है? विस्तृत रूप से समझाइये।

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